Wednesday, December 18, 2024

Tuesday, December 17, 2024

EXPOSURE VISIT OF STUDENTS AT MAHATMA GANDHI MISSION UNIVERSITY

 The vibrant city of Shambhajinagar, nestled in the heart of Maharashtra, played host to an exciting educational excursion for a group of eager learners. Our journey took us to two remarkable institutions: the prestigious MGM University and the awe-inspiring Space Centre.

  

The Space Centre: A Journey Beyond the Stars

The highlight of our trip was undoubtedly the Space Centre of Shambhajinagar. As we stepped into this celestial haven, a sense of wonder washed over us. The centre boasts an impressive array of exhibits, including models of rockets, satellites, and other space exploration paraphernalia. We marveled at the intricate details of these marvels of  learning about the history of space travel and the cutting-edge technologies that propel us towards the cosmos. A planetarium show transported us to the depths of the universe, where we gazed upon constellations, planets, and galaxies, igniting our imaginations and fueling our curiosity about the vast expanse beyond our world.  

A Day of Discovery and Inspiration

The field trip to MGM University and the Space Centre of Shambhajinagar was an enriching experience that broadened our horizons and ignited our thirst for knowledge. We returned home with a deeper appreciation for the power of education and the boundless potential of human ingenuity. The memories of this adventure will forever remain etched in our minds, serving as a constant reminder of the wonders that await us as we embark on our own journeys of discovery.


MGM University: A Hub of Academic Excellence

Our last stop was the sprawling campus of MGM University, a renowned institution dedicated to fostering holistic development. We were greeted by the grandeur of its architecture and the lush greenery that enveloped the campus. A guided tour led us through state-of-the-art facilities, including well-equipped laboratories, spacious classrooms, and a modern library. We interacted with professors and students, gaining insights into the diverse academic programs offered by the university. The emphasis on research and innovation was palpable, inspiring us to pursue our own intellectual pursuits with renewed vigor. 








Wednesday, November 27, 2024

SPEECH AND DRAWING COMPETITION ON CONSTITUTION DAY

 Constitution Day also known as 'Samvidhan Divas', is celebrated in our country on 26th November every year to commemorate the adoption of the Constitution of India. On 26th November 1949, the Constituent Assembly of India adopted the Constitution of India, which came into effect from 26th January 1950.The Ministry of Social Justice and Empowerment on 19th November 2015 notified the decision of Government of India to celebrate the 26th day of November every year as 'Constitution Day' to promote Constitution values among citizens.




                                            
                                     



                                 








Thursday, November 21, 2024

SPEECH AND BOOK TALK ON NATIONAL LIBRARY WEEK CELEBRATION AND JANJATIYA GAURAV DIVAS



 बिरसा मुंडा (15 नवम्बर 1875 - 9 जून 1900) एक भारतीय आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी और मुंडा जनजाति के लोक नायक थे। उन्होंने ब्रिटिश राज के दौरान 19वीं शताब्दी के अंत में बंगाल प्रेसीडेंसी (अब झारखंड) में हुए एक आदिवासी धार्मिक सहस्राब्दी आंदोलन का नेतृत्व किया, जिससे वह भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति बन गए। भारत के आदिवासी उन्हें भगवान मानते हैं और 'धरतीबा' के नाम से भी जाना जाता है।






9वीं शताब्दी के अंत में अंग्रेजों ने कुटिल नीति अपनाकर आदिवासियों को लगातार जल-जंगल-जमीन और उनके प्राकृतिक संसाधनों से बेदखल करने लगे। हालाँकि आदिवासी विद्रोह करते थें, लेकिन संख्या बल में कम होने एवं आधुनिक हथियारों की अनुपलब्धता के कारण उनके विद्रोह को कुछ ही दिनों में दबा दिया जाता था। यह सब देखकर बिरसा मुंडा विचलित हो गए, और अंततः 1895 में अंग्रेजों की लागू की गयी जमींदारी प्रथा और राजस्व-व्यवस्था के ख़िलाफ़ लड़ाई के साथ-साथ जंगल-जमीन की लड़ाई छेड़ दी। यह मात्र विद्रोह नहीं था। यह आदिवासी अस्मिता, स्वायतत्ता और संस्कृति को बचाने के लिए संग्राम था। पिछले सभी विद्रोह से सीखते हुए, बिरसा मुंडा ने पहले सभी आदिवासियों को संगठित किया फिर छेड़ दिया अंग्रेजों के ख़िलाफ़ महाविद्रोह 'उलगुलान'। [3]

● आदिवासी पुनरुत्थान के जनक बिरसा मुंडा

धीरे-धीरे बिरसा मुंडा का ध्यान मुंडा समुदाय की गरीबी की ओर गया। आदिवासियों का जीवन अभावों से भरा हुआ था। और इस स्थिति का फायदा मिशनरी उठाने लगे थे और आदिवासियों को ईसाईयत का पाठ पढ़ाते थे। कुछ इतिहासकार कहते हैं कि गरीब आदिवासियों को यह कहकर बरगलाया जाता था कि तुम्हारे ऊपर जो गरीबी का प्रकोप है वो ईश्वर का है। हमारे साथ आओ हमें तुम्हें भात देंगे कपड़े भी देंगे। उस समय बीमारी को भी ईश्वरी प्रकोप से जोड़ा जाता था।

20 वर्ष के होते होते बिरसा मुंडा वैष्णव धर्म की ओर मुड़ गए जो आदिवासी किसी महामारी को दैवीय प्रकोप मानते थे उनको वे महामारी से बचने के उपाय समझाते और लोग बड़े ध्यान से उन्हें सुनते और उनकी बात मानते थें। आदिवासी हैजा, चेचक, साँप के काटने बाघ के खाए जाने को ईश्वर की मर्जी मानते, लेकिन बिरसा उन्हें सिखाते कि चेचक-हैजा से कैसे लड़ा जाता है। वो आदिवासियों को धर्म एवं संस्कृति से जुड़े रहने के लिए कहते और साथ ही साथ मिशनरियों के कुचक्र से बचने की सलाह भी देते। धीरे धीरे लोग बिरसा मुंडा की कही बातों पर विश्वास करने लगे और मिशनरी की बातों को नकारने लगे। बिरसा मुंडा आदिवासियों के भगवान हो गए और उन्हें 'धरती आबा' कहा जाने लगा। 





Monday, September 16, 2024

हिन्दी दिवस

 

हिन्दी दिवस

 


  चलिये जाने हिन्दी दिवस के बारे मे

हर साल 14 सितंबर को पूरे देश में हिंदी दिवस मनाया जाता है. यह दिन हिंदी भाषा के महत्व और महत्ता पर ध्यान देने के साथ भारत की भाषाई विविधता को बढ़ावा देने और जश्न मनाने के लिए मनाया जाता है. साल 1949 में आज ही के दिन संविधान सभा ने एक मत होकर हिंदी को भारत की राजभाषा के तौर पर स्वीकार किया था. इसी महत्वपूर्ण निर्णय के बाद यह तय किया गया था कि इसे हर क्षेत्र में प्रसारित किया जाएगा. राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा के अनुरोध पर हिंदी को वर्ष 1953 से पूरे भारत में लागू किया गया. जिसके बाद से ही 14 सितम्बर को हर वर्ष हिंदी दिवस के तौर पर मनाया जाता है. 

क्यों 14 सितंबर को ही मनाते हैं हिंदी दिवस?

14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाने की एक नहीं,बल्कि दो वजह है। दरअसल, यह वही दिन है, जब साल 1949 में लंबी चर्चा के बाद देवनागरी लिपि में हिंदी को देश की आधिकारिक भाषा घोषित किया गया था। इसके लिए 14 तारीख का चुनाव खुद देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने किया था। वहीं, इस दिन को मनाने के पीछे एक और खास वजह एक मशहूर हिंदी कवि से जुड़ी हुई है। इसी दिन महान हिंदी कवि राजेंद्र सिंह की जयंती भी होती है। भारतीय विद्वान, हिंदी-प्रतिष्ठित, संस्कृतिविद, और एक इतिहासकार होने के साथ ही उन्होंने हिंदी को आधिकारिक भाषा बनाने में अहम भूमिका निभाई थी।

भारत ही नहीं इन देशों में भी बोली जाती है हिंदी 

हिंदी सिर्फ भारत में ही सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा नहीं है, यह दुनियाभर में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली चौथी भाषा है। भारत के अलावा कई अन्य देश ऐसे हैं, जहां लोग हिंदी भाषा का इस्तेमाल करते हैं। इन देशों में नेपाल, मॉरीशस, फिजी, पाकिस्तान, सिंगापुर, त्रिनिदाद एंड टोबैगो,बांग्लादेश शामिल हैं।

इतिहास

भारत की संविधान सभा ने 14 सितंबर, 1949 को देवनागरी लिपि में लिखी हिंदी को भारत की आधिकारिक भाषा के रूप में स्वीकार किया। आधिकारिक तौर पर पहला हिंदी दिवस 14 सितंबर, 1953 को मनाया गया था। हिंदी को आधिकारिक भाषाओं में से एक के रूप में अपनाने के पीछे का कारण अनेक भाषाओं वाले राष्ट्र में प्रशासन को सरल बनाना था। हिंदी को राजभाषा के रूप में अपनाने के लिए कई लेखकों, कवियों और कार्यकर्ताओं की तरफ से भी प्रयास किया गया था।

महत्व

हिंदी दिवस को मनाने के पीछे एक कारण यह है कि देश में अंग्रेजी भाषा के बढ़ते चलन और हिंदी की उपेक्षा को रोकना है। आपको बता दें कि महात्मा गांधी ने हिंदी को जन-जन की भाषा भी कहा था। हिंदी दिवस के दिन पूरे देश में कई साहित्यिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जिसमें लोग हिंदी साहित्य के महान कार्यों का जश्न मनाते हैं। राजभाषा कीर्ति पुरस्कार और राजभाषा गौरव पुरस्कार भी हिंदी दिवस पर मंत्रालयों, विभागों, सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों (पीएसयू), राष्ट्रीयकृत बैंकों और नागरिकों को उनके योगदान व हिंदी को बढ़ावा देने के लिए दिए जाते हैं। 14 सितंबर को स्कूलों और कॉलेजों में भी हिंदी दिवस के महत्व को लेकर कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।

 

 

 

PUSTKOPHAR-2024-25

 The concept of ’Pustakopahar’ (Passing over of the textbooks to juniors students) has been developed with the objective of using relatively new-used books by the students of all age groups before the beginning of an academic year.




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